रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना
हाथों से तुम उम्मीद का रिश्ता न छोड़ना
झेली बहुत है अब के बरस जेठ की तपन
बादल, किसी के खेत को प्यासा न छोड़ना
ले जाएगी उड़ा के हवा धुंध का पहाड़
शिकवे भी हों तो मिलना-मिलाना न छोड़ना
तुम फूल हो, सुगंध उड़ाते रहो यूँ ही
औरों की तरह अपना रवैया न छोड़ना
तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं
आगे बढ़ो तो दीप जलाना न छोड़ना
Saturday, October 26, 2013
रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना / गिरिराज शरण अग्रवाल
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