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Wednesday, October 2, 2013

सेंध / आशुतोष दुबे

मन में सेंध लगाने में
जान से ज़्यादा का ख़तरा है

पढ़ने के बाद
बन्द करके नहीं रखी जा सकती
किसी और की डायरी
हमेशा फड़फड़ाते रहेंगे
अन्धेरे में कुछ सफ़े

डसेंगे अक्षर वे
साँपों की तरह लहराते-चमकते हुए

प्यास से सूखेगा कण्ठ
पसीना छलछला आएगा माथे पर
रह जाएगा जीवन
पँक्तियों के पहाड़ के उस तरफ़
और लौटना होगा असम्भव

आख़िरी वक़्त होगा यह
जो बहुत लम्बा चलेगा
आखिरी साँस तक

यह वह नहीं
उसकी लिखत है

माफ़ नहीं करेगी यह

आशुतोष दुबे

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