गोली की मेहरबानी कुछ बम की मेहरबानी
फ़ाक़े हुए कईं दिन से मातम की मेहरबानी
कलियाँ भी अब उगलने चिंगारियाँ लगी हैं
दहशत है गुलसितां में सिस्टम की मेहरबानी
तिकड़म कईं भिड़ा कर भी हो रहे विफल थे
ठेका मिला जो उन को ये रम की मेहरबानी
जो घाव था ज़रा-सा नासूर बन गया है
जो तुमने दिया था उस मरहम की मेहरबानी
कोठी से चल के गोरी कोठे पे आ गई है
दिल जिस को दिया था उस बालम की मेहरबानी
कैसी गरम हवा है पकने लगे हैं बच्चे
गुम हो रहा है बचपन मौसम की मेहरबानी
Sunday, February 2, 2014
गोली की मेहरबानी / अशोक अंजुम
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