जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई
उन की निगाह और भी मासूम हो गई
हालात ने किसी से जुदा कर दिया मुझे
अब ज़िंदगी से ज़िंदगी महरूम हो गई
क़ल्ब ओ ज़मीर बे-हिस ओ बे-जान हो गए
दुनिया ख़ुलूस ओ दर्द से महरूम हो गई
उन की नज़र के कोई इशारे न पा सका
मेरे जुनूँ की चारों तरफ़ धूम हो गई
कुछ इस तरह से वक़्त ने लीं करवटें 'असद'
हँसती हुई निगाह भी मग़मूम हो गई
Friday, February 21, 2014
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई / 'असअद' भोपाली
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