Pages

Sunday, November 3, 2013

माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ / कुम्भनदास

माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ।
मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥
खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ।
'कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥

कुम्भनदास

0 comments :

Post a Comment