चश्म-ए-हैरत सारे मंज़र एक जैसे हो गए
देख ले सहरा समंदर एक जैसे हो गए
जागती आँखों को मेरी बारहा धोखा हुआ
ख़्वाब और ताबीर अक्सर एक जैसे हो गए
वक़्त ने हर एक चेहरा एक जैसा कर दिया
आरजू़ के सारे पैकर एक जैसे हो गए
जब से हम को ठोकरें खाने की आदत हो गई
रास्तों के सारे पत्थर एक जैसे हो गए
दीदा-ए-तर की कहानी अब मुकम्मल हो गई
दर्द सब अश्कों में घुल कर एक जैसे हो गए
‘शाद’ इतनी बढ़ गई हैं मेरे दिल की वहशतें
अब जुनूँ में दश्त और घर एक जैसे हो गए
Thursday, November 28, 2013
चश्म-ए-हैरत सारे मंज़र एक जैसे हो गए / ख़ुशबीर सिंह 'शाद'
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