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Friday, November 29, 2013

आम की टहनी / कैलाश गौतम

देख करके बौर वाली
आम की टहनी
तन गये घुटने कि जैसे
खुल गई कुहनी ।

धूप बतियाती हवा से
रंग बतियाते
फूल-पत्तों के ठहाके
दूर तक जाते
      छू गई चुटकी
      हँसी की हो गई बोहनी ।

पीठ पर बस्ता लिए
विद्या कसम खाते
जा रहे स्कूल बच्चे
शब्द खनकाते
      इस तरह
      सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।

राग में डूबीं दिशाएँ
रंग में डूबीं
हाथ आई ज़िन्दगी के
संग में डूबीं
      कल
      उतरने जा रही है खेत में कटनी ।

कैलाश गौतम

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