माँ, नहीं बादल बुलाती
खुली छत से
कुछ न सूरज से, न कुछ
माँगे शरत से
भूल बैठी लोरियाँ,
किस्से कहानी
बाढ़ की गंगा हुई
दो बूंद पानी
रूठकर बैठी हुई है
देवव्रत से
क्या न करवाचौथ के
मेले लेगेंगे?
चूड़ियों के हाट घाटों पर
सजेंगे?
क्या न अब मोती गिरेगा
टूट नथ से?
बैठते हल, कोख सूनी
होंठ नीले
किस तरह हों बेटियों के
हाथ पीले?
चलें हम भी
बात कर आएँ
Saturday, November 30, 2013
अकाल के बाद / उमाशंकर तिवारी
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