अब दो आलम से सदा-ए-साज़ आती है मुझे
दिल की आहट से तेरी आवाज़ आती है मुझे
या समात का भरम है या किसी नग़्में की गूँज
एक पहचानी हुई आवाज़ आती है मुझे
किसने खोला है हवा में गेसूओं को नाज़ से
नर्मरौ बरसात की आवाज़ आती है मुझे
उस की नाज़ुक उँगलियों को देख कर अक्सर 'अदम'
एक हल्की सी सदा-ए-साज़ आती है मुझे
Saturday, November 30, 2013
अब दो आलम से सदा-ए-साज़ आती है मुझे / अब्दुल हमीद 'अदम'
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