हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
इश्क़ की मग़फ़िरत[1] की दुआ कीजिए
इस सलीक़े से उनसे गिला कीजिए
जब गिला कीजिए, हँस दिया कीजिए
दूसरों पर अगर तबसिरा[2] कीजिए
सामने आईना रख लिया कीजिए
आप सुख से हैं तर्के-तआल्लुक़[3] के बाद
इतनी जल्दी न ये फ़ैसला कीजिए
कोई धोखा न खा जाए मेरी तरह
ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिए
अक्ल-ओ-दिल अपनी अपनी कहें जब 'खुमार'
अक्ल की सुनिए, दिल का कहा कीजिये
Friday, November 29, 2013
हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए / ख़ुमार बाराबंकवी
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