बीच पुल पर खड़ा मैं अवाक
ओस भीगी नीरवता में
बांदा के आकाश का चन्द्रमा
हो रहा विदा
केन तट पर छोड़े जा रहा
- पाँव के निशान
- पाँव के निशान
बड़ी-बड़ी पलकों वाली उसकी प्रेयसी
बेख़बर मेरी और मेरे कविमित्र की मौज़ूदगी से
निहारती एकटक वो मुक्तकेशी
जन्मों से बँधी
अभी मांग में उतरेगा केसर
और संसार बदल जाएगा
साँस रोके खड़ा मैं पुल पर
सुदूर बादल के घोंसलों में कहीं से
बोल पड़ता है कोई जलपाँखी
सचेत-सा करता केन को
- मेरे बारे में
- मेरे बारे में
ओ, भोले जलपाँखी
मेरी भी केन थी एक
राग-भैरवी-सी
सात-सात पुलों के नीचे से हो बहती
मैं चलता तटों पर साथ उसके
खेलता
गाता
इठलाता
कभी उतरता तहों में
तैरता आर-पार...
बरसों बाद जलावतनी में
यह विस्मय...
निश्शब्दता...
और क्षितिज पर सरकती
वो श्यामल लिहाफ़
केन का अलसाया रूप
मुखर चाहना फिर से प्रिय की
मैं लौटता हूँ वापस
उदास और अभिभूत
चुप है जलपाँखी भी
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