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Monday, November 25, 2013

दंगा / कुमार अनुपम

बर्बरता का ऐतिहासिक पुनर्पाठ
आस्था की प्रतियोगिता
कट्टरता का परीक्षण काल था
 
यह
धार्मिकता का
सुपीरियारिटी सत्यापन था
 
फासिस्ट गर्व और भय
की हीनता का उन्माद था
 
यह
जातिधारकों
के निठल्लेपन का पश्चात्ताप था
 
यह
अकेलों के एकताबाजी प्रदर्शन
का भ्रमित घमंड था
 
कुंठाओं को शांत करने
के प्रार्थित मौके की लूट
 
मनुष्यता के खिलाफ
मनुष्यों की अमानुषिक स्थापना
 
धर्मप्रतिष्ठा के लिए
एक अधार्मिक प्रायोजन था
 
यह
व्यवस्था संरक्षक
के नपुंसक नियंत्रण
का तानाशाही साक्ष्य था
 
सभ्यता के कत्ल
की व्यग्र बेकरारी
का कर्मकांड था यह
हमारे समय में
जिसे मनाया जा रहा समारोह की तरह
जगह जगह

कुमार अनुपम

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