खुश्बू की तरह साथ लगा ले गई हमको
कूचे से तेरे बादे-सबा ले गई हमको
पत्थर थे कि गौहर थे अब इस बात का क्या ज़िक्र
इक मौज बहरहाल बहा ले गई हमको
फिर छोड़ दिया रेगे-सरे-राह समझ कर
कुछ दूर तो मौसम की हवा ले गई हमको
तुम कैसे गिरे आंधी में छतनार दरख्तो!
हम लोग तो पत्ते थे उड़ा ले गई हमको
हम कौन शनावर थे कि यूँ पार उतरते
सूखे हुए होंटों की दुआ ले गई हमको
इस शहर में ग़ारत-गरे-ईमाँ तो बहुत थे
कुछ घर की शराफ़त ही बचा ले गई हमको
Saturday, November 30, 2013
खुश्बू की तरह साथ लगा ले गई हमको / इरफ़ान सिद्दीकी
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