किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही
सही वो दुश्मन-ए-जाँ-आशना मिले तो सही
अभी तो लाल हरी बत्तियों को देखते हैं
मिले किसी की ख़बर सिलसिला मिले तो सही
ये क़ैद है तो रिहाई भी अब ज़रूरी है
किसी भी सम्त कोई रास्ता मिले तो सही
ये शाम-ए-सर्द में हर सू अलाव जलते हैं
सियह ख़ामोशी में कोई सदा मिले तो सही
क़बा-ए-जिस्म के है तार तार नज़र करें
कभी कहीं वही पागल हवा मिले तो सही
Friday, November 1, 2013
किसी का क़हर किसी की दुआ / अब्दुल हमीद
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