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Saturday, November 23, 2013

प्रतीक्षा / कुमार अनुपम

 पापा जब घर लौटते थे पहाड़ों से भोलापन लाते थे

पापा बताते थे कि पहाड़ों पर चलने वाली गाड़ियाँ
बूढ़ों का भी बहुत ख़याल रखती हैं
इसीलिए इतनी तेज़ चलती हैं
कि बच्चे भी आसानी से चढ़ और उतर लें

पापा जब घर लौटते थे तो बातों ही बातों में बताते थे कि पहाड़ों पर चलने वाली गाड़ियाँ...

लेकिन आज जिसके लिए आ गए थे एक घंटा पहले
वह गुज़र चुकी है सामने से "जनसेवा एक्सप्रेस"
प्लेटफ़ॉर्म पर गुज़र चुकी गाड़ी के बाद की नमकीन उदासी और गर्दिश है

एक ओर किनारे
अपना सामान सहेजते काँप रहे हैं पापा
जैसे समुद्री लहरों से किनराया हुआ कचरा हों

किसी अगली कम भीड़ वाली गाड़ी की प्रतीक्षा करते
चाहते तो हैं किन्तु उचित नहीं समझते बताना कि पहाड़ों पर चलने वाली गाड़ियाँ...

कुमार अनुपम

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