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Sunday, November 24, 2013

हैफ़ दिल में तेरे वफ़ा न हुई / 'फ़ुगां'

हैफ़ दिल में तेरे वफ़ा न हुई
क्यूँ तेरी चश्म में हया न हुई

यार ने नामा-बर से ख़त न लिया
मेरी ख़ातिर अज़ीज़ क्या न हुई

रह गया दूर तेरे कूचे से
ख़ाक भी मेरी पेश पा न हुई

कट गई उम्र मेरी ग़फ़लत में
कुछ तेरी बंदगी अदा न हुई

दूद-ए-दिल तेरी ज़ुल्फ़ तक पहुँचे
आह याँ तक मेरी रसा न हुई

चश्म-ए-ख़ूँ-ख़्वार से 'फ़ुग़ाँ' देखा
दिल-ए-बीमार को शिफ़ा न हुई

अशरफ़ अली 'फ़ुगां'

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