मैं इन्साँ हूँ मगर शैतान से पंजा लड़ाता हूँ
जहाँ मैं पाँव रखता हूँ वहीं फ़ितने उठाता हूँ
मेरे जैसा भी क्या खूँखार कोई जानवर होगा
मुझे जो प्यार करता है उसी को काट खाता हूँ
मेरी हस्ती दिखावा है छलावा ही छलावा है
मैं दिल में ज़हर रखता हूँ लबों से मुस्कराता हूँ
मेरा मज़हब तो मतलब है मस्जिद और मन्दिर क्या
मेरा मतलब निकलते ही ख़ुदा को भूल जाता हूँ
मेरे जीने का ज़रिया हैं सभी रिश्ते सभी नाते
मेरे सब काम आते हैं मैं किस के काम आता हूँ
मेरी पूजा-इबादत क्या सभी कुछ ढोंग है यारो
फ़क़त जन्नत के लालच में सभी चक्कर चलाता हूँ
मुझे रहबर समझते हो तुम्हारी भूल है ‘आज़ाद’
मुझे मिल जाए मौक़ा तो वतन को बेच खाता हूँ
Friday, November 22, 2013
मैं इन्साँ हूँ मगर शैतान से पंजा लड़ाता हूँ / अज़ीज़ आज़ाद
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