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Saturday, November 2, 2013

कैँधोँ तुव चाकर चतुर अनियारे पैठि / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

कैँधोँ तुव चाकर चतुर अनियारे पैठि ,
हृदय पयोधि मन मोती के कढ़ैया हैँ ।
कैँधौँ राजहँस मनसिज के सनेही बनि ,
ताकी हुति तीछन कटाछन चलैया हैँ ।
कैँधौँ नर-धीरता की थाह लै कहत कान ,
कैँधौँ तुव चित चँचलाई दरसैया हैँ ।
कैँधौँ ये तिहारे छविवारे वर मैन बाल ,
नागर नरन चित्त चुम्बक बनैया हैँ ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।

अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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