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Tuesday, December 31, 2013

हास्य-रस -दो / अकबर इलाहाबादी

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पाकर ख़िताब नाच का भी ज़ौक़ हो गया
‘सर’ हो गये, तो ‘बाल’ का भी शौक़ हो गया
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बोला चपरासी जो मैं पहुँचा ब-उम्मीदे-सलाम-
"फाँकिये ख़ाक़ आप भी साहब हवा खाने गये"
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ख़ुदा की राह में अब रेल चल गई ‘अकबर’!
जो जान देना हो अंजन से कट मरो इक दिन.
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क्या ग़नीमत नहीं ये आज़ादी
साँस लेते हैं बात करते हैं!
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तंग इस दुनिया से दिल दौरे-फ़लक़ में आ गया
जिस जगह मैंने बनाया घर, सड़क में आ गया

अकबर इलाहाबादी

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