जाने हैं हम, तुम कैसे थे, क्या हो गए, बताना क्या
रस्मन आओ बोल-चाल लें, ऐसा भी घबराना क्या
तुम मुझसे पूछो हो, सब कुछ ठीक-ठाक है, बोलूँ क्या
क्या कुछ कितना टूट गया है, समझो हो, समझाना क्या
मिल जाएँ तो अपने दीखें, बिछड़ें तो बेगाने-से
हाथ मिला जो हाथ झटक लें, उनसे हाथ मिलाना क्या
मुद्दत हुई, किया था वादा आने का, पर नहीं आए
तुमने अपने जी की कर ली, छोड़ो भी शरमाना क्या
रिश्ता तो रिश्ता है, रिश्तेदारी दिल का सौदा है
दिल ही न माने तो फिर प्यारे, खाली आना-जाना क्या
उठो शलभ जी डेरा छोड़ो, क्यों मन भारी करते हो
अपनी साँस नहीं जब अपनी, फिर अपना-बेगाना क्या!
Tuesday, December 31, 2013
जाने हैं हम / कृष्ण शलभ
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