सरकै अंग अँग अथै गति सी मिसि की रिसकी सिसिकी भरती ।
करि हूँ हूँ हहा हमसों हरिसों कै कका की सों मो करको धरती ।
मुख नाक सिकोरि सिकोरति भौँहनि तोष तबै चित को हरती ।
चुरिया पहिरावत पेखिये लाल तौ बाल निहाल हमै करती ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Wednesday, December 4, 2013
सरकै अंग अँग अथै गति सी मिसि की रिसकी सिसिकी भरती / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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