इस नागवार सन्नाटे में आ कोई धुन गाएँ
ख़ामोश लबों की लाचारी गीतों में बुन जाएँ
आ कोई धुन गाएँ ।।
इस बार रंग दीवारों का काला और गहरा है
सपनों के पैरों में बेड़ी साँसों पर पहरा है
संशय का भूत भगाने को
अपनी ज्वाला चेताने को
आ कोई धुन गाएँ ।।
कोयल ख़ामोश रहेगी क्या संगीनों के डर से
जंगल में मोर थिरक उठ्ठेंगे बाँध कफ़न सर से
चन्दन में लपट उठाने को
लपटों में कमल खिलाने को
आ कोई धुन गाएँ ।।
आँखों से आँखें चार करो बाँहों को कसने दो
छिलने दो अन्तर के छाले घावों को रिसने दो
यूँ बिगड़ी बात बनाने को
संकेतों में समझाने को आ कोई धुन जाएँ ।
ख़ामोश लबों की लाचारी गीतों में बुन जाएँ ।।
Sunday, December 1, 2013
इमरजेंसी का गीत / कांतिमोहन 'सोज़'
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