हाले दिल सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मानी को पा नहीं सकता
इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
होशे-आरिफ़ की है यही पहचान
कि ख़ुदी में समा नहीं सकता
पोंछ सकता है हमनशीं आँसू
दाग़े-दिल को मिटा नहीं सकता
मुझको हैरत है इस कदर उस पर
इल्म उसका घटा नहीं सकता
Thursday, December 5, 2013
हाले दिल सुना नहीं सकता / अकबर इलाहाबादी
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