ख़िरदमन्दों[1]से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा[2] क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा[3] क्या है
ख़ुदी[4] को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर[5] से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुदपूछे बता तेरी रज़ा[6] क्या है
मुक़ामे-गुफ़्तगू[7]क्या है अगर मैं कीमियागर[8] हूँ
यही सोज़े-नफ़स[9] है, और मेरी कीमिया[10] क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इसमें
न पूछ ऐ हमनशीं मुझसे वो चश्मे-सुर्मा-सा [11] क्या है
नवा-ए-सुबह-गाही[12] ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की यह सज़ा है वो ख़ता क्या है
Tuesday, December 3, 2013
ख़िरदमंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है / इक़बाल
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