Pages

Friday, December 6, 2013

तुम्हारी पलकों का कँपना / अज्ञेय

तुम्हारी पलकों का कँपना ।
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

मानो दीखा तुम्हें किसी कली के
खिलने का सपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

सपने की एक किरण मुझको दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना,
और सब समय पराया है
बस उतना क्षण अपना ।

तुम्हारी
पलकों का कँपना ।

अज्ञेय

0 comments :

Post a Comment