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Monday, December 2, 2013

सलवटें / आकांक्षा पारे

जो चुभती हैं तुम्हें
वो निगाहें नहीं हैं लोगों की
वो सलवटें हैं
मेरे बिस्तर की
जो बन जाती हैं
अकसर
रात भर करवटें
बदलते हुए।

आकांक्षा पारे

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