हाँ अकेला हूँ मगर इतना नहीं,
तूने शायद गौर से देखा नहीं.
तेरा मन बदला है कैसे मान लूँ,
तूने पत्थर हाथ का फैंका नहीं.
छू न पायें आदमी के हौसले,
आसमाँ इतना कहीं ऊँचा नहीं.
नाव तो तूफ़ान में मेरी भी थी,
पर मेरी हिम्मत कि में डूबा नहीं.
जानता था पत्थरों की ख़्वाहिशें,
पत्थरों को इस लिये पूजा नही.
मैं ज़माने से अलग होता गया,
मैंने अपने आपको बेचा नहीं.
Monday, December 2, 2013
हाँ अकेला हूँ मगर इतना नहीं, / अशोक रावत
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