दे के मिलने का भरोसा उसने
मुझको छोड़ा न कहीं का उसने
दूरियाँ और बढ़ा दी गोया
फ़ासला रख के ज़रा-सा उसने
यों भी तीखा था हुस्न का तेवर
संगे दिल को भी तराशा उसने
मेरे किरदारे वफ़ा को लेकर
सबको दिखलाया तमाशा उसने
हमने दिल रक्खा था लुटा बैठे
हुस्न पाया है भला-सा उसने
खत तो भेजा है मुहब्बत में मगर
अपना भेजा नहीं पता उसने
मेरे आगे वो बोलता ही नहीं
तुझसे क्या क्या कहा बता उसने
Tuesday, December 31, 2013
तराशा उसने / अभिज्ञात
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