मेरा मन कहता है
चलूँ
उन अंधेरी,
बदनाम गलियों में
जहाँ छटपटा रहा है
मेरी बहनों का जीवन
जिन्होंने ओढ़ा हुआ है
तार-तार इज्ज़त का पल्ला
जिन्हें रौंदा गया है
बार-बार
उन अंधेरी,
बदनाम गलियों में
खिली
मासूम कलियों को
बटोर लाऊँ मैं
खिलने के लिए उन्हें भी
साफ हवा खाद पानी की
ज़रूरत है
कि उन्हें भी एक
मुक्त आँगन की ज़रूरत है।
Wednesday, December 4, 2013
ज़रूरत / अनिता भारती
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