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Monday, September 30, 2013

घर-2 / अरुण देव

मिट्टी ने कहा जल से थोड़ी देर के लिए बस जाओ मेरी देह में
फिर दोनों निर्वस्त्र खड़े हो गए सूरज के सामने
कि पता ही नहीं चलता था कि पानी ने कहाँ-कहाँ गढ़ा है उसे
कि पानी के आकार में ख़ुद वह ढल गया है कि
पानी ने उसके अन्दर तान लिया है अपना होना
कि तयशुदा आकार में दोनों कैसे एक साथ ढल गए होंगे
सूरज तपता रहा उनके बीच
पकती रही ईंट

अरुण देव

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