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Thursday, December 11, 2014

बहुत पहले / कुमार रवींद्र

बहुत पहले
रोशनी का मंत्र हमने भी जपा था
बहुत पहले

इस अंधेरे नए युग में
मंत्र वह हो गया उल्टा
और किरणें भी हमारे सूर्य की
हो गईं कुलटा
बहुत पहले
बर्फ़ युग में भी हमारा घर तपा था
बहुत पहले

दीये की बाती हमारी
थी अलौकिक खो गई वह
हवन की जलती अगिन थी
हो गई है सुरमई वह
बहुत पहले
हाँ किसी अख़बार में भी यह छपा था
बहुत पहले

वक्त के जादूभरे
इस झुटपुटे में रंग खोए
जग गए वे दैत्य
जो थे रोशनी में रहे सोए
बहुत पहले
आँख से भी रोशनी का बहनपा था
बहुत पहले

कुमार रवींद्र

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