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Saturday, December 6, 2014

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब / ग़ालिब

फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2]
दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब

पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6]
साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब

है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर
मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब

जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11]
दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब

बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में ख़ूँ हो-हो कर
शहपरे-रंग [15] से है बालकुशा[16] मौजे-शराब

मौज-ए-गुल[17] से चराग़ाँ[18] है गुज़रगाहे ख़याल[19]
है तसव्वुर[20] में जिबस[21] जल्वानुमा मौजे-शराब

नश्शे के पर्दे में है मह्वे[22] तमाशा -ए-दिमाग़
बस कि रखती है सरे- नश-ओ-नुमा[23] मौजे शराब

एक आलम[24] पे है तूफ़ानी-ए-कैफ़ीयते-फ़स्ल[25]
मौज -ए-सब्ज़ा-ए-नौख़ेज़[26] से ता मौजे-शराब

शरहे[27] -हंगामा-ए-हस्ती[28] है, ज़हे[29]मौसमे-गुल
रहबरे-क़तरा ब-दरिया[30] है ख़ुशा[31]मौजे-शराब

होश उड़ते हैं मेरे जल्वा-ए-गुल[32] देख असद
फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा मौजे-शराब

ग़ालिब

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