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Saturday, December 13, 2014

गहरी जड़ें लिए / अर्चना भैंसारे

तुम आँगन के बरगद हो पिता
जो धँसे रहे गहरी जड़ें लिए

जिसकी बलिष्‍ठ भुजाएँ
उठा सकीं मेरे झूलों का बोझ
और जिन्होंने थामे रखी
मज़बूती से आँगन की मिट्टी
ताकि एक भी कण रिश्‍तों का
विषमता की बाढ़ में न बह पाए

उसकी आँखें निगरानी करे
ताकि ना आने पाए मेरे घर सर्द हवा
और बचा रहे मेरा खपरैल छाया घर
किसी धूप-छाँव से ।

अर्चना भैंसारे

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