समय की धूप से संवलाई
सलोनी सी लड़की है वह
जिसकी आंखें अपने वक्त की पीड़ा को
असाधारण ढंग से उद़भाषित करती
छिटका देती हैं
विस्फारित कोरों तक
जहां वर्तमान की गर्द
लगातार
उस चमक को पीना चाहती है
पर लड़की जीना चाहती है
अनवरत
आंसू उसकी पलकों की कोरों पर
मचलते रहते हैं
संशय के दौर चलते रहते हैं
गुस्सा की-बोर्ड पर चलती उंगलियों के पोरों से
छिटकता रहता है
शून्य के परदे पर
और वह बहती रहती है
विडंबनाओं के किनारे काटती
Thursday, December 4, 2014
लड़की जीना चाहती है / कुमार मुकुल
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