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Thursday, December 4, 2014

फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं / फ़राज़

"फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं
मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं

लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला
मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं

मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं

"फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है
तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं

अहमद फ़राज़

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