अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
आग बन कर जो कभी दिल में निहाँ रहता था
आज दुनिया में उसी ग़म की निशानी हूँ मैं
हाए क्या क़हर है मरहूम जवानी की याद
दिल से कहती है के ख़ंजर की रवानी हूँ मैं
आलम-अफ़रोज़ तपिश तेरे लिए लाया हूँ
ऐ ग़म-ए-इश्क़ तेरा अहद-ए-जवानी हूँ मैं
चर्ख़ है नग़मा-गर अय्याम हैं नग़मे 'अख़्तर'
दास्ताँ-गो है ग़म-ए-दहर कहानी हूँ मैं.
Friday, December 12, 2014
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
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