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Wednesday, December 10, 2014

हुसेन के नाम / कुमार अनुपम


'माँ कभी नहीं मरती' -
तुमने बचपन में अदेखी
अपनी माँ को जन्म दिया फिर से
इस तरह
'मदर' की अमरता साबित हुई

पंढरपुर की सड़क पर
जो औरत है
कमर पर बच्चे को वत्सलता से सम्हालती बहुविधि
सर पर थामे हुए गठरी
उसे तुमने ही बनाया 'भारतमाता'
उन्मत्त सांड का सामना करती हुई शक्तिमयी

यह दृश्य
हमारे समय के लिए
अब अपरिचित नहीं है

उसी सांड के ककुद पर
संतुलित करते हुए नई रौशनी भरी लैम्प
तुमने जीने की कला सीखी
और यायावरी की राह ली

यह बुद्ध की ही राह तो थी

हुसेन !
तुम्हारी साइकिल पर टँगे हैं
इंदौर के गुजिश्ता दिन
और
लालटेन और छाता

उस साइकिल से सटी
खड़ी है 'गजगामिनी'
और तुम्हारी
विश्व की वह सबसे सुंदर स्त्री
वह दलित संघर्ष भरी लड़की 'मायावती'
जिसे तुम्हारे कैनवस से अभी बाहर आना था.

और हाँ
'स्पाईडर एंड द लैम्प' की 'पंच देवियाँ'
जिनमें एक के हाथ में झूल रही मकड़ी
मुझे जाने क्यों
तुम्हारे कट्टर कलाविरोधी ही लगते हैं
अपनी औकात में लटकते हुए

हुसेन
तुम्हारे आख्यान
किवदंतियों की तरह मक़बूल हो गए हैं
कला से जगत तक आक्षितिज
जिस पर
अब बाज़ार भी फ़िदा है

लेकिन
एक अतृप्ति जो आनुवंशिक थी तुम्हारे भीतर
उसके ख़िलाफ़ भी लड़ते रहे आजीवन
एक अपनी सी लड़ाई
और कला को विजय दिलाई

हुसेन
कर्बला से
तुम्हारे अश्व लौट रहे हैं
अपनी शक्ति से भरे
वे थके नहीं हैं
उन्हें तय करनी है
तुम्हारे कैनवस के नामालूम फैलाव
की अभी अनंत यात्रा

कुमार अनुपम

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