दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे,
अब तुझे पा के यह उलझन है के खोये कैसे,
ज़हन छलनी जो किया है, तो यह मजबूरी है,
जितने कांटे हैं, वोह तलवों में पिरोयें कैसे,
हम ने माना के बहुत देर है हश्र आने तक,
चार जानिब तेरी आहट हो तो सोयें कैसे,
कितनी हसरत थी, तुझे पास बिठा कर रोते,
अब यह-यह मुश्किल है, तेरे सामने रोयें कैसे
Sunday, December 7, 2014
दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी
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