Pages

Monday, December 8, 2014

एक बार फिर / अनीता अग्रवाल

एक बार फिर वह
सोच रही है
अपनी जिंदगी के बारे में
झुग्गी में
बर्तन मांजने से
सुबह की शुरूआत करती हुई
और
टूटी खाट की
लटकती रस्स्यिों के
झूले में
रात को करवट बदलने के बीीच
जीवित होने का
अहसास दिलाने के लिये
क्या कुछ है शेष

अनिता अग्रवाल

0 comments :

Post a Comment