चाँदनी में रात भर सारा जहाँ अच्छा लगा
धूप जब फैली तो अपना ही मकाँ अच्छा लगा
अब तो ये एहसास भी बाक़ी नहीं है दोस्तों
किस जगह हम मुज़महिल थे और कहाँ अच्छा लगा
आके अब ठहरे हुये पानी से दिलचस्पी हुई
एक मुद्दत तक हमें आबे रवाँ अच्छा लगा
लुट गये जब रास्ते में जाके तब आँखे खुली
पहले तो एख़लाक़-ए-मीर कारवाँ अच्छा लगा
जब हक़ीक़त सामने आई तो हैरत में पड़े
मुद्दतों हम को भी हुस्ने दास्ताँ अच्छा लगा
Friday, December 5, 2014
चाँदनी में रात भर सारा जहाँ अच्छा लगा / अनवर जलालपुरी
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