Pages

Monday, December 15, 2014

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब / ग़ालिब

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है

ग़ालिब

0 comments :

Post a Comment