बाबू! यह दुनिया
कहीं न कहीं से ‘जात’ है!!
खर है पतवार है
गाँव है गिराँव है,
मल्लाहों की छेदी
पानी में नाव है।
- हँसी पहन कर आती
- रिश्तों की घात है!!
- हँसी पहन कर आती
दिन जिसमें रहते हैं
घर-सा वह नहीं लगे,
रातें हैं सेंधों की
चोरों के हुए सगे,
- सेंदुर की डिबिया है
- ओठों का पात है!!
- सेंदुर की डिबिया है
नींद में रतौंधी में
चलने का काम है,
अन्धों की ड्योढ़ी में
अक्षर का धाम है।
- राजा की पीठ पर
- रानी का लात है!!
- राजा की पीठ पर
सोच की दुकान लगा
अनुवादी ताला है।
हर विमर्श का पन्ना
बेचता निवाला है
- गांधी लोहिया वाला
- पाँत में कुज़ात है!!
- गांधी लोहिया वाला
प्रगतिशील तुलसी हैं
कबिरा दक्षिणपंथी,
आधुनिक लिबास में
पुजते गुरु ग्रंथी।
- मुर्दे की जीत है
- जीवन की मात है !!
- मुर्दे की जीत है
राम धरे कुर्सी पर
पूँजी की बाढ़ है,
परजा के पानी को
सोखता अषाढ़ है।
- धूप के चबैने-सा
- भुँजता जलजात है!!
- धूप के चबैने-सा
सत्ता में दूध-भात
लोकतंत्र बौना है
माई की भीख में
पल रहा बेटउना है।
- अन्न है ग़रीब का
- दलाल की कनात है!!
- अन्न है ग़रीब का
चूल्हे में आग नहीं
आँखों में राख है,
दिल्ली के मुजरे में
बस्तर की साख है।
- भीलों के पाँव हैं
- मोरों की रात है!!
- भीलों के पाँव हैं
हाड़, गोड़-तोड़ है
अन्धा हर मोड़ है,
गँवई की छाती में
निकला ‘बरतोड़’ है।
- चीरे का ख़ून है
- शहर की परात है!!
- चीरे का ख़ून है
टूट रहे पुल सारे
तेज़ चली आँधी है,
लोक और लाज की
मौर कहाँ बाँधी है।
- खुली-खुली देहें हैं
- खोया अहिवात है!!
- खुली-खुली देहें हैं
लोग हुए यानों के
तोपी हुई खानों के
बीच के रहे सूने
बोल कुछ मकानों के।
- कंठ में जहर सोखे
- घर-घर सुकरात है!!
- कंठ में जहर सोखे
मछली के दिन टूटे
रेत में नदी है,
गागर-सी प्यासी
ताप में सदी है।
- होम-जली उंगली का
- पोर-पोर तात है!!
- होम-जली उंगली का
अमरीकी कथा की
पंजीरी देश में
पंडित की पोथी में
वैश्विक संदेश में।
- सभासदों के खातों
- चढ़ती खैरात है!!
- सभासदों के खातों
घुटनों धोती वाला
आधा है आदमी।
आधा दिन शोक का
आधे दिन है नमी।
- टिड्डों की ‘पौंपुजी’
- खेत में बरात है!!
- टिड्डों की ‘पौंपुजी’
समझो कुछ, समझे क्या
बहुत दंद-फंद है,
एक गली निकली तो
चार गली बंद है।
- बूढ़े सठिया रहे
- कोई तो बात है!!
- बूढ़े सठिया रहे
कर्ज़ है पटौती का
पीछे से भीख है,
बिना तेल का ‘जीगर’
ककई का ‘लीख’ है।
- चूल्हा बिन ‘नटई’ का
- थाली में भात है!!
- चूल्हा बिन ‘नटई’ का
मेरा-तेरा वाला
अन्धा-गठजोड़ है,
चला-चली के आगे
और नया मोड़ है।
- बाबू! यह दुनिया है
- दुनिया का ‘नात’ है।।
- बाबू! यह दुनिया है
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