तुम्हारा हाथ पकड़ना
जैसे बेला के फूलों को लेना हाथों में
जैसे दुनिया की सबसे छोटी नदी को महसूसना क़रीब
जैसे छोटी बहर की ग़ज़ल का पास से गुजरना
जैसे सबसे भोले सवालों को बैठना सुलझाने
जैसे बचपन में छूट गई
अपनी सबसे प्यारी गुड़िया से फिर मिलना
जैसे फिर से गाना
अपने छुटपन के अल्लम-गल्लम गीत
जैसे कंचों के खेल की उमर में
लौटना फिर
जैसे आत्मा के सबसे प्यारे टुकड़े को छूना
Saturday, December 6, 2014
बेटी का हाथ-1 / आशीष त्रिपाठी
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