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Thursday, March 6, 2014

बारिश / आलोक धन्वा

बारिश एक राह है
स्त्री तक जाने की

बरसता हुआ पानी
बहता है
जीवित और मृत मनुष्यों के बीच

बारिश
एक तरह की रात है

एक सुदूर और बाहरी चीज़
इतने लम्बे समय के बाद
भी
शरीर से ज़्यादा
दिमाग भीगता है

कई बार
घर-बाहर एक होने लगता है !

बड़े जानवर
खड़े-खड़े भीगते हैं देर तक
आषाढ़ में
आसमान के नीचे
आदिम दिनों का कंपन
जगाते हैं

बारिश की आवाज़ में
शामिल है मेरी भी आवाज़ !

आलोक धन्वा

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