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Tuesday, March 4, 2014

कुछ तो कहीं हुआ है / अमित

कुछ तो कहीं हुआ है, भाई
कुछ तो कहीं हुआ है
झमझम बारिश है बसंत में
सावन में पछुआ है
कुछ तो कहीं हुआ है

हुई कूक कोयल की गायब
बौर लदी अमराई गायब
सरसों फूली सहमी-सहमी
फागुन से अँगड़ाई गायब
मौसम-चक्र पहेली जैसा
मानव ज्यों भकुआ है
कुछ तो कहीं हुआ है

जीवन से जीविका बड़ी है
मन, मौसम में जंग छिड़ी है
मानव का अस्तित्त्व गौण है
नास्डॉक पर नज़र गड़ी है
पीछे गहरी खाँई उसके
आगे पड़ा कुआँ है
कुछ तो कहीं हुआ है

तुलसी-सूर-कबीर कहाँ तक
देगें साथ फ़कीर कहाँ तक
घोर कामना के जंगल में
राह दिखायें पीर कहाँ तक
राम नाम जिह्वा पर लेकिन
चिन्तन में बटुआ है
कुछ तो कहीं हुआ है

अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’

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